ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल
ये पर्वतों के दायरें,नैनीताल
मेरे जीने का शहर है नैनीताल। यह सही है कि मैं उत्तराखंड में जन्मा तो नहीं हूं मगर न जाने क्यों लगता है जैसे मेरा पूर्व जन्म का इस शहर से नाता रहा है। नैनीताल से असीम लगाव होने की बजह से मैं कभी कभी कल्पना शील हो जाता हूँ कि शायद सौ बार जन्म लेने के क्रम में एक जन्म मैंने इन कुमायूं की पहाड़ियों में भी लिया होगा। हिन्दू धर्म आस्था के अनुसार हमें चौरासी लाख योनि से गुजरना होता हैं न। ऐसा प्रतीत होता है मेरी अंतरात्मा जैसे नैनीताल की सुरम्य पहाड़ियों में ही रचती बसती है। जितनी खुली बंद आंखों से मैंने नैनीताल को समझा है,देखा है ,महसूस किया है शायद इतनी नजदीकियां ऐसे ताल्लुकात यहां के रहने वाले भी इतना नहीं रखते होंगे। शहर में फैली पहाड़ी से जैसे कोई सुरीली आवाज अक्सर गूंजती रहती हैं और मुझे बुलाती रहती हैं आज रे परदेशी।
परदेशी ही सही लेकिन आज मैं यायावरी के दिनों में नैनीताल प्रवास के दरमियाँ उन यादगार क्षणों की अनमोल यादों की हिस्सेदारी आपके साथ करूँगा जिसमें इतिहास पर्यटन,सभ्यता ,संस्कृति सम्यक अत्यंत उपयोगी व रोचक जानकारियां होंगी।
न जाने क्यूँ वर्ष १९६३ में अपने जन्म लेने के ठीक करीब बारह तेरह साल बाद से ही नैनीताल की अनदेखी,धुंधली यादें तस्वीरें मेरी जेहन में आने लगी थी। मैं बंद आंखों से ही तसब्बुर में नैनीताल को देखने लगा था। और जानने लगा था कि इसका इतिहास क्या रहा होगा ? नैनी झील कैसी दिखती होगी ,तल्ली ताल कहाँ होगा,मल्लीताल के बाज़ार कैसे होंगे,बजरी वाला मैदान की शक्ल पता नहीं कैसा दिखती होगी ...आदि आदि। मैं क्या सोचता रहा ,क्या देखता रहा आपके सामने भी बयान करने की स्थिति में हूं। पूरी उम्मीद के साथ इस घुमक्कड़ी में आप मेरे साथ बने रहेंगे,यादों के सफ़र की अनोखी शुरुआत करता हूँ।
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आंग्ल गुरखा युद्ध।चित्र साभार
१८१४ का वर्ष था यह जब ब्रिटिशर्स ने आंग्ल गुरखा युद्ध जीती थी ,सुगौली संधि के जरिए ने कुमायूं हिल्स पर अपना कब्जा जमा लिया था। हम ब्रितानी सरकार के लिए आभार प्रकट करते हैं जिनकी वजह से हमें नैनीताल जैसे खूबसूरत पर्वतीय स्थल हमारे अधिकार के अंतर्गत आए। हालाँकि यह भी सच है कि इंग्लैंड की अपेक्षा उन्हें यहाँ की जलवायुं विषम लगती थी इसलिए गर्मियों में राहत पाने के लिए अपनी पूरी प्रशासनिक व्यवस्था के साथ भारतीय पहाड़ी क्षेत्रों में वे स्थानांतरित हो जाते थे। इसलिए ही प्रत्येक राज्यों में उन्होंने अपनी सुविधा के लिए ही ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन राजधानी बना रखी थी। तब से ही शिमला ,मसूरी ,नैनीताल,रानीखेत,अल्मोड़ा , श्रीनगर ,कसौली रांची,ऊटी तथा दार्जलिंग जैसे पर्वतीय सैरग़ाह अस्तित्व में आये।
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