Tumahre Liye Hindi Patrika
तुम्हारे लिए. पत्रिका .
अपने अन्तर्मन का साहित्य.
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भावनाओं की अटूट कड़ी,
यादों के सुनहरें पन्नें.
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प्रथम मीडिया.
एम. एस. मीडिया.
ए. एंड. एम. मीडिया.
के सौजन्य से.
विज्ञापन प्रतिनिधि : भरत किशोर. मोबाइल - 9334099155
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निर्मला सिन्हा , एम. ए. हिंदी ,पटना विश्वविद्यालय
प्रधानाध्यापिका, हरनौत प्रोजेक्ट स्कूल.
गीता सिन्हा. एम. ए. द्वय हिंदी ,संस्कृत. पटना विश्वविद्यालय
पूर्व शिक्षिका.टेल्को ,जमशेदपुर.
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डॉ. शारदा सिन्हा , पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष ,
नालंदा महिला कॉलेज.
डॉ. रूप कला प्रसाद ,प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग .
डॉ. रंजना, स्त्री रोग विशेषज्ञ.
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आज का सुविचार. प्रशांति निलयम से.
संकलन गीता सिन्हा
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लेखक.
डॉ. आर. के. दुबे
डॉ. मधुप रमण
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पृष्ठ १.सहयोग.
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पृष्ठ २ .गद्य : यात्रा वृतांत :
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यात्रा वृतांत : लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान.
लेखक. डॉ. मधुप रमण.
लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान ,आज के इस यात्रा वृतांत में हम लोग आपको ऐसे कोई कोल्ड डेजर्ट की तस्वीर देंगे जिसके अंतर्गत मरुद्यान,बालू के छोटे छोटे रेतीले टीले उड़ते हुए धुल के उड़ते गर्द गुब्बार,कैमलस राइड तथा श्योक एवं नुब्रा वैली का दिलचस्प जानकारियां होंगी, जिसे आप जानना,सुनना और देखना पसंद करेंगे।इसी सोच के साथ ही आप जब कभी भी मेरे ब्लॉग को देखें या पढ़े तो इसे लाइक तथा कमेंट करना मत भूलिएगा। क्योंकि इस ब्लॉग में नुब्रा - श्योक घाटी से जुड़ी यथा कहां घूमे ,कहां रहें ,क्या खाए ,सम्बंधित कुछ न कुछ ऐसी महत्वपूर्ण बातें हैं,यादगार कहानियां हैं ,मजेदार किस्सें हैं जिसे आपको जरूर जानना चाहिए,और जब कभी भीआप लदाख जाएंगे जहाँ आपके जाने के निमित यह उपलब्ध जानकारी आप के लिए मददगार ही साबित होंगी।
लद्दाख अमूमन यह क्षेत्र शुष्क होने के कारण वनस्पति विहीन है,यहां जानवरों के चलने के लिए कहीं कहीं पर ही घास एवं छोटी-छोटी झाड़ियां मिलती है। घाटी में सरपत विलो एवं पॉपलर से भरे उपवन देखे जा सकते हैं,ग्रीष्म ऋतु में सेब खुबानी एवं अखरोट जैसे फलों के पेड़ पल्लवित होते हैं. लद्दाख में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां नजर आती हैं, इनमें रॉबिन, रेड स्टार्ट तिब्बती स्नोकोक, रेवेन यहां हूप पाए जाने वाले सामान्य पक्षी है,लद्दाख के पशुओं में जंगली बकरी,जंगली भेड़ एवं याक विशेष प्रकार के कुत्ते आदि पाले जाते हैं।इन पशुओं को दूध मांस खाल प्राप्त करने के लिए पालें जातें हैं।लद्दाख एक उच्च अक्षांसीय मरुस्थल है क्योंकि हिमालय मानसून को रोक देता है।पानी का मुख्य स्रोत सर्दियों में हुई बर्फबारी है,पिछले दस साल पूर्व २०१० में आई बाढ़ के कारण असामान्य बारिश और पिघलते ग्लेशियर हैं जिसके लिये निश्चित ही ग्लोबल वार्मिंग ही कारण है।यायावरी के पहले दिन ही यहां वहां कम वनस्पतियों से घिरे नंगी पहाड़ों और लद्दाख के स्थानीय के दर्शनीय स्थलों को हमने पहले ही दिन भ्रमण कर लिया था।अब हम शांति स्तूप देख लेने के बाद हम लद्दाख से बाहर जाने की सोच रहें थे दूसरे दिन स्थानीय गाइड के अनुसार हमें नुब्रा - श्योक वैली और पेगांग लेक घूमने जाना था।आपको बता दें यदि आप लोग लद्दाख से बाहर श्योक और पेंगांग लेक घूमने का मन बनाते हैं तो
आपको लद्दाख में ही लद्दाख से बाहर घूमने की परमिट भी लेनी होगी।इसके लिए आप स्वयं पर भरोसा कर सकते हैं या खुद से ऑनलाइन आवेदन देने के लिए प्रयास कर सकते है।
नुब्रा घाटी एक तीन भुजाओं वाली घाटी है जो लद्दाख घाटी के उत्तर पूर्व में स्थित है,यह श्योक और नुब्रा नदियों के संगम से बनी है। श्योक नदी उत्तर पश्चिम की ओर बहती है और नुब्रा नदी एक न्यूनकोण बनाते हुए इसमें उत्तर-उत्तर पश्चिम से आ कर मिलती है। नुब्रा की केन्द्रीय बस्ती दिस्कित की दूरी लेह से १५० किलो मीटर है।खुश्क और चट्टानी आसमान इलाके वाले लद्दाख की जलवायु अत्यंत ठंडी है इस वजह से यहां वनस्पतियां बहुत ही सीमित मात्रा में दिखती है,जब गर्मियों का मौसम होता है,बर्फ़ पिघलती है बर्फ पिघलने से घाटियां जब नमी युक्त हो जाती है तो रोज,जंगली गुलाब और विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों से कहीं कहीं ग्रीष्म ऋतु में भर जाती हैं। हमने सुबह सुबह ही लद्दाख छोड़ दिया था। शहर छोड़ने से पूर्व ऑक्सीजन की दो सिलेंडर ले ली गयी थी, क्योंकि हमें बतलाया गया था कि खारदुंगला पास के पास ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और हमें ऑक्सीजन लेने की आवश्यकता पड़ जाएंगी।
जीरो पॉइंट: लद्दाख के बाद हम लोग थोड़े अंतराल के बाद हम जीरो पॉइंट पहुंच चुके थे जहां से नीचे देखने में नीचे की घाटियों में शहर पसरा पड़ा दिख रहा था, दरअसल घाटियों के ऊपर ज़ीरो पॉइंट से हमारी खड़ी गाड़ी के नीचे छोटे छोटे दिखने वाले लदाख के एक या दो मंजिला घर स्पष्टतः अपनी जग़ह पर बड़े ही थे। हम ऊंचाई पर जो थे कुछेक घंटे उपरांत हम खारदुंगला पास पहुंच चुके थे जिसकी हम लगातार चर्चा कर रहें थे ।यहां बर्फ़ ही बर्फ़ थी। हम काफ़ी ऊंचाई पर थे। मौसम काफी सर्द था। हवाएं तेज चल रही थी।
खारदुंगला पास : सही में इतनी ऊंचाई पर हमें वहां ठंडी में ऑक्सीजन की कमी से हमारे यूनिट के कुछ साथियोंको उल्टी सर दर्द तथा सांस लेने में कठिनाई महसूस होने भी लगी थी ,लेकिन कुछ ने इस विषम परिस्थिति में भीअपने आप को अनुकूल कर लिया था ,तो हम में से कुछेक ने बर्फ में मस्ती करने की आदत नहीं छोड़ी थी मैं गाड़ी में बैठा असहज महसूस करता हुआ ऑक्सीजन ले रहा था।मेरी समझ में हमसभी को स्वयं की सुविधा के लिएऑक्सीजन की एक दो सिलेंडर ले ही लेनी चाहिए।
हम लोग खारदुंगला पास के बर्फ़िस्तान में कुछ समय व्यतीत कर लेने के बाद और दुनिया के सबसे ऊंचा समझे जाने वाले हाईएस्ट मोटरेबल पास से धीरे धीरे नुब्रा वैली के मैदान में नीचे उतरने लगे थे ठंडी सर्द हवाओं के बीच ऑक्सीजन की कमी वाले ५३५९ मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित है यह खारदुंगला पास ,जहां हम चाह कर भी ज्यादा मौज मस्ती नहीं कर सकते थे क्योंकि इससे हमारे यूनिट के सदस्यों की तबीयत माउंटेन सिकनेस की वजह से खराब होने लगी थी,बाद में हम सबों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी ऑक्सीजन एवं दवाएं लेनी पड़ी थी।प्राइमरी एवं स्वास्थ्य केंद्र में दवाईआं आदि लेने के पश्चात् हम सभी कुछ बेहतर हुए थे लेकिन कुछेक ने गाड़ी में बैठना ही उचित समझा क्योंकि उनकी तबीयत ठीक नहीं थी,जैसे जैसे हम ऊंचाई से नीचे आते गए हमारे स्वास्थ्य में उत्तरोत्तर सुधार होता गया।दरअसल ये हायर एल्टीट्यूड में होने वाली बीमारी की शिकायत थी जो हमें हो रही थी।नीचे की घाटियों के मध्य बहती अविरल धारा के साथ साथ ही श्रीनगर लद्दाख के राजमार्ग पर हमारी गाड़ी तेजी से सरपट दौड़ते हुए अपने लक्ष्य को छू रही थी।थोड़े समय के बाद दूर कहीं उड़ते गर्द गुब्बार में दूर एक दो कूबड़ वाले ऊंट अस्पष्टतः दिखने लगे थे।शायद दूर कहीं दूर एक दो कूबड़ वाले ऊंटों के चलने से आसमान में एक बार गर्द गुब्बार भी उड़ रहा था रास्तें में सड़कों के किनारे दूर से एक दो कूबड़ वाले ऊंट आते भी दिख रहें थे।
दिस्कित मोनेस्टरी : तभी रास्तें में दिखा दिस्कित मठ या दिस्कित जो गोम्पा गांव का मुख्य आकर्षण है।इसे नुब्रा घाटी के सबसे बड़े और सबसे पुराने बौद्ध मठों में से एक माना जाता है।दिस्कित मठ को १४ वीं सदी में त्सोंग खपा के एक शिष्य चंग्ज़ेम त्सेराब जंगपो द्वारा स्थापित किया गया था।इस गोम्पा में मैत्रेय बुद्ध कि मूर्ति, चित्रकारी और नगाड़ा प्रतिष्ठापित हैं।
नुब्रा वैली की तरफ़ बढ़ते हुए हमें सामने ज्यादातर एक या दो मंजिले मकान ही दिखे जिसमें अनजाने में हमें लेह - लद्दाख की सभ्यता संस्कृति से हमें झलक मिल रही थी कुछ मिनटों के पश्चात जिस स्थान पर हम आ चुके थे वह नुब्रा वैली ही थी.
नुब्रा वैली सामने रेत का समंदर ,बालू के छोटे छोटे टीले था। ऊंट इधर उधर जा रहें थे।
पर्यटकों और उनकी गाड़ियां कतारों में खड़ी दिख रही थी,हमने कल्पना भी नहीं की थी ताकि हम बर्फ से घिरे पहाड़ों के बीच बालू के टीलों पर चहलक़दमी करते हुए हमें इतने सारे लोग मिल जाएंगे।राजस्थान ,पंजाब ,बिहार ,उत्तरप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,कर्नाटक ,तमिलनाडु और न जाने कहां कहां से ढेर सारे पर्यटक नुब्रा वैली के सौंदर्य को देखने पहुंच चुके थे।हममें से कुछ ऊंटों की सवारी लेने के लिए आगे बढ़ गए तो कुछ अपनी मस्ती में इधर घूमने लगे थे। मैं इधर-उधर घूमता हुए ,लोगों से बातचीत करने के क्रम में नुब्रा की संस्कृति के बारें में शोध करने लगा था,बर्फ जमी पहाड़ियों की तलहटी में ठंडे रेगिस्तान के बारे में सुनना तत्पश्चात देखना हमारे लिए इस जीवन में अत्यंत उत्सुकतामिश्रित सुखद अनुभव था तथा आश्चर्य से भरा हुआ भीविस्तृत रेतीली ठंडे रेगिस्तान में बहती हुई स्वच्छ कल कल धारा हमें ओएसिस की याद दिला रही थी पानी इतना ठंडा था कि आप कुछ एक सेकंड में से ज्यादा तो रख नहीं पाएंगे। ज्यादा तो नहीं मगर थोड़ी बहुत बनस्पत्तियां हमें नुब्रा वैली में भी दिख रही थी।
मैंने सम्पूर्ण लद्दाख भ्रमण के दरमियान नुब्रा श्योक वैली घूमने के सिलसिले में मैंने एक बात भली भांति समझी कि नुब्रा एक अत्यंत नमी रहित एक ठंडा रेगिस्तान वाली जग़ह है यहां राजस्थान राजस्थान के टीले जैसी ही संस्कृति है जहां आवाजाही के लिए रेगिस्तान के जहाज समझे जाने वाले ऊंटों की ही भरमार है।और इसकी सवारी के लिए आपको पैसे खर्च करने होंगे यह भी तय है ।
देश विदेश से आए पर्यटकों से मैंने उनकी अनुभूति के बारें में बतियाते हुए मुझे ऐसा लगा कि हमारा भारतवर्ष सही में विभिन्नताओं में एकता का देश है,जिसकी विशाल सभ्यता संस्कृति पर हम भारतीयों को असीम गर्व होता है। मेरा मानना है कि यदि भारत को एक करना है तो खुद में पर्यटन की आदत डालें और घूमते हुए अन्य लोगों के साथ उनसे अपनापन और एकता का रिश्ता कायम करें जिससे भारत जुड़ेगा ही।हमने नुब्रा में सहरा की याद दिलाने वाले के लिए रहने के लिए कई एक टेंट भी देखे जिसमें पर्यटक होंगे ।इनकी अधिकता अक्सर थार के रेगिस्तानी भूभागों में देखी जा सकती है पता नहीं क्यों नुब्रा श्योक में रहते हुए मुझे बार-बार राजस्थान की याद आ रही थी।
घर सांचो शाम में घूमने के पश्चात हम पहले से ही एकदम घर जैसी अनुभूति रखने वाले होटल साँचों में विश्रामित हुए,इसके मालिक मैनेजर कर्मचारियों का व्यवहार स्वभाव देव तुल्य था अत्यंत सरल तथा अपने जैसा था,अतिथि देवो भवः का भाव यहाँ के प्रत्येक निवासियों में देखा जा सकता हैं।जो सराहनीय है वह यह कि होटल सोलर एनर्जी,गर्म पानी से युक्त था आप चाहें तो यहां भी आ कर रुक सकते हैहमने घर जैसे एहसास रखने वाले होटल में ठहरने का १ दिन का किराया तक़रीबन हज़ार रुपया अदा किया थाएक महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको नुब्रा पेगांग लेक घूमने के लिए चार दिन का समय निश्चित कर सकते हैं जिससे आपका पूरा पर्यटन संपूर्ण हो सकेगा।रात में नुब्रा में सोते हुए दूसरे दिन अहले सुबह से पैंगांग लेक से घूम कर शाम तक आप लद्दाख वापस भी जा सकते है,लेकिन मुझे भी कुछ कहना हैं ट्रैफिक जाम ,लैंडस्लाइड आदि बातों को आप को मद्देनजर रखते हुए हमें एक दिन बचा कर रखना होगा। शाम के समय पर्यटकों के लिए कहीं-कहीं कहीं पर लद्दाख के नुब्रा वैली में आने जाने वाले पर्यटक के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी अति मनभावन आयोजन होता है जिसके देखने का आनंद आप पर्यटक ले सकते है।
नुब्रा में कैमल राइड का मजा जरूर लेते हुए रेगिस्तानी आबोहबा का आनंद ले।रात्रि में घर जैसे एहसास वाले होटल में ठहरे और दूसरे दिन ही सुबह सुबह ही पेंगांग लेक के लिए निकल जाये।आपके जेहन में पेंगांग लेक की यादें भी रह जाएगी यह मेरा मानना है।
सरसराती ठंडी हवाओं के बीच,शुद्ध पोषक ,सुस्वादु लजीज व्यंजनों के साथ साथ से जुड़ी यादें हमें कभी नहीं भूलती हैं,यह एक अद्भुत से माने जाने वाले लामाओं के शहर लद्दाख और इससे जुड़े कई एक छोटे छोटे शहर,कस्बों की कहानी है ,जिसे हम आगे भी जारी रखेंगे।
और भी बहुत कुछ है जो हम नहीं देख पाए खराब मौसम की वजह से उसकी भी हम चर्चा करेंगे जिससे आपको कोई भी जानकारी अधूरी न मिलने पाए।अगर जब कभी भी अगली बार आएंगे तो हम शायद अन्य जगहों को भी देख सकेंगे ,यह सोच कर हमने अपनी यात्रा जारी रखी है ,रात्रि विश्राम के बाद रास्ते में हमने भाग मिल्खा भाग फिल्म के शूटिंग का स्थल भी देखा जहां फिल्म का एक लम्बा भाग यहीं शूट किया गया था। यह जानकारी हमें हमारे ड्राइवर ने दी थी।
हमने भगवान को याद करने के साथ साथ हमने बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन को भी याद किया जिसके प्रयासों से हमें यह मार्ग सदैव खुला हुआ मिलता है।
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पृष्ठ ३. पद्य : कविताएं.
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मौसम बदलने वाला है.
देखो ना
धान की फसल
पक गयी है खेतों में
रबी की फसल झुमेगी
पर लगाए कौन ?
घरों के सारे लोग
गावों के सब पडोसी
हवाखोरी करने
निकल जो गयें हैं
सडकों पर ।
दृश्य नुमाया है
सड़कें जाम परिवहन ठप्प
हो गये हैं सक्रिय दूसरी ओर
सुरक्षा प्रहरी
राजा के आदेश पर
हो गया है जारी
उनके बैठकों का दौर
जैसे खोज लेंगे समाधान
बड़ी समस्या का
पर कोई किसी का
सुने तब न !
हां ! सुना है
चली है तूफानी हवा
तेज गति से
मैदानी क्षेत्र के खेतों से
और पहुंचे शायद
पठारी क्षेत्र तक
प्लावित ना कर दे बहुत कुछ
प्रहरियों के शस्त्र उनके पोशाक
यहां तक कि राजाओं के ताज
सबकुछ बदरंग हो ना जाए भींग
बेमौसमी बरसात में
लगता है बेहतरी के लिए
मौसम बदलने वाला है !
डॉ.आर.के.दुबे
प्राचार्य .
डी ए वी.
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पद्य : सीपिकाएं.
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डॉ.रंजना.
स्त्री रोग विशेषज्ञ.
नालंदा.
फिर से उड़ना सीखाउंगी.
जाने कैसा सैलाब था जो सब बहाकर ले गया,
मेरी रोशनी, मेरी चमक ना मालूम कहाँ पर ले गया।
हर तरफ बहार थी, महक थी गुलिस्तान में,
प्यारी सी बुलबुल थी, चहक थी आसमान में,
देख न पाई ,छुप कर बैठा था कोई सैय्याद,
उड़ न पाई फिर ,वो सारे पंख कतर ले गया।
रोती रही बुलबुल छुपकर अपने घर में,
जिए या ना जिए सोचती अपने मन में
तभी किसी ने स्नेह से हाथ रखा,
देखा वो तो उसकी माँ थी,
बड़े प्यार से पाला जिसने
वो तो उसकी जान थी ,बोली
तेरे सारे पंख मैं ले आऊंगी,
तुझको फिर से उड़ना सीखाऊंगी,
ऐ माँ तेरी बोली तो है फरिश्तों जैसी,
तेरा हौसला मेरा सारा डर ले गया,
फिर से उड़ने का, फिर से जीने का,
मुझे एक बार फिर से सबर दे गया।
( पहली कविता )
माँ ,तेरे जाने के बाद.
बंद दरवाजा हंसकर चिढ़ाता है माँ, तेरे जाने के बाद
अब कोई नहीं घर बुलाता है माँ, तेरे जाने के बाद
कितने खत पड़े हैं दहलीज पे,डाकिया आवाज़ देकर,
उदास चला जाता है माँ, तेरे जाने के बाद
कुछ बीमार तो थी तुम, तीखा मीठा ना खाना था
फिर भी क्यूँ अचार मुरब्बा तुझे बनाना था
ये अब समझ में आता है माँ, तेरे जाने के बाद
हर पर्व तू बुलाती रही, हर पर्व मैं बहाने करता रहा
हर साल यूँ ही जाता रहा, हर साल तुमसे बचता रहा ।
खो गई तू किस जहाँ में, ढूँढूँ तुम्हें अब कहाँ मैं
यही ग़म मुझे सताता है माँ, तेरे जाने के बाद
परदेश में पैसा बहुत है, नाम भी खूब कमाया माँ,
बिन पैसों के तूने पाला मुझको,
पैसा होकर भी,तुझको रख न पाया माँ
इतनी छोटी थी औकात मेरी
अब ये वक़्त बताता है माँ ,तेरे जाने के बाद ।
( दूसरी कविता )
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पृष्ठ ३. गज़ल.
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प्राचार्य .
डी ए वी.
( पहली गज़ल )
कोई कहता है कि तू लमकां में रहता है
बेसब्र इंतजार में न सब्र का पैमाना है
तेरे इंतजार में यूं मन को तरसाना है।
कई दिन गुजारे हमने कई बरस गुजारेंगे
तेरी जूस्तजू में लगी आँखों को पथराना है।
कोई कहता है कि तू लमकां में रहता है
पता नहीं था तू टूटे दिल का नजराना है।
तेरी हस्ती गवाह है तू भुलता नहीं कभी
दुनियां - ए - चमन का तू ही तो अफ़साना है।
मेरे बांसुरी की धुन में तो तेरा हीं तराना है
जब तलक है सांसे मेरी धुन तेरा बजाना है।
( दूसरी गज़ल )
जिंदगी का काम ही था ठोकर दे मारना
कातिल अदा से तेरी घायल जमाना था
इत्तेफाकन मैं भी उसका दीवाना था।
शब वही शब थी और दिन भी वही दिन
वो तेरी याद में जिन्हें मुझको बिताना था।
मुझको ये हैरत कि शक्ल पहचानी हुई थी
उन्हे ये गुस्सा कि इस गली में क्यूँ आना था।
यारों इसी का नाम कभी आशिकी पड़ा था
आग दिल में बसाना था जी को जलाना था।
जिंदगी का काम ही था ठोकर दे मारना
और मुझे तो लुत्फ बस ठोकरों का उठाना था।
अंश हवा के हवाले से ....
शब्दार्थ : लमकां : शून्य
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गज़ल.
कवि. रचयिता
नालंदा गान
( पहली गज़ल )
जो है अपना ठिकाना चले आइए.
जो है अपना ठिकाना चले आइए
दिल है पागल दीवाना चले आइए ।
तन्हा करवट न यूं ही बदलते रहें,
कोई करके बहाना चले आइए ।
क़द्रदां हो जहां, आपकी क़द्र हो,
वहीं महफ़िल सजाना चले आइए ।
प्यार में आपके जो भी पागल हुए,
उनसे दिल हो लगाना चले आइए ।
मैनें माना कि मुझसे हुईं गलतियां,
छोड़िए अब जताना चले आइए ।
आपसे दूर जाकर कहां खुश हुए,
अब क्या सुनना सुनाना चले आइए।
जख्म-ए-दिल हो हरा गर तो फिर उस जगह,
जो हो मरहम लगाना चले आइए।
जिसको कहती है दुनियां ऋतुराज अब,
हक़ उन्हीं पर जताना चले आइए।
( दूसरी नज़्म )
आपने आके महफ़िल जवां कर दिया
आपने आके महफ़िल जवां कर दिया
शुक्रिया आपका, आपका शुक्रिया ।
आप आए तो मौसम सुहाना हुआ,
ग़मज़दा बज़्म थी, हो गई खुशनुमा।
खुद-ब-खुद नज़्म, दिल से निकलने लगी,
और माहौल भी खूबरू हो गया।
क्या अजब साज़ है गुलसितां में नया,
अब परिंदे भी गाने लगे चहचहा ।
यूं लगा जैसे जन्नत उतर आई है,
आपका जो यहां आज आना हुआ ।
प्यार की खुशबू बिखरी है चारों तरफ,
बज़्म पर छाया है आपका ही नशा ।
है ये चाहत ज़रा सी ऋतुराज की,
लोग ताली बजाएं न क्यूं मुस्कुरा ।
इस्तक़बालिया नज़्म
रचयिता : कुमार राकेश ऋतुराज
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पृष्ठ ४. आपने कहा.
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पृष्ठ ६. विज्ञापन.
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पृष्ठ ७. व्यंग्य चित्र.
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व्यंग्य चित्र १ । हिंदी।
व्यंग्य चित्र १ । हिंदी।
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